IODIUM होम्योपैथिक दवा के फायदे | Benefits of IODIUM Homeopathic Medicine




आयोडम (Iodum)



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Iodium benefits in hindi


लक्षण तथा मुख्य-रोग

रोगी हर समय खाता रहता है  परन्तु दुबला होता चला जाता हैं (सूखा रोग)। भूख से तकलीफें बढ़ती और खाने से। विश्राम से तकलीफे बढ़ती और हरकत काम में लगे रहने से घटती हैं शरीर सूखता जाता है, परन्तु गिल्टियां बढ़ती जाती हैं, और गिल्टियों में भी स्तन सूखते जाते हैं त्वचा छील देने वाला स्राव; नाक से, आंख से तथा पुराने प्रदर का छील देने लक्षणों में वृद्धि वाला स्राव भूख न लगना (Anorexia) आत्म-हत्या या किसी को मार डालने काविचार। भोजन का गैस बन कर दिन-रात डकार आना

लक्षणों में कमी:-


ठंड या ठंडी हवा से रोग घटना
हरकत से रोग घटना घटती है
खाना खाने से रोग में कमी

लक्षण में वृद्धी:-


गर्मी से परेशान होना
भूखा रहने से परेशान होना
आराम से परेशान रहना आना

मानसिकता से संबन्धित लक्षण :- रोगी व्यक्ति की मानसिक स्थिति खराब होने के कारण रोगी में अनेक प्रकार के लक्षण उत्पन्न होने लगते हैं जैसे| रोगी में चिड़चिड़ापन आ जाना और साथ ही शान्त रहने के कारण रोगी में स्वयं के लिए हीन भावना पैदा होना। रोगी को अपने भविष्य की कोई चिन्ता । नहीं रहती तथा वे अपने कार्य व अन्य मानसिक विचारों में ही खोया रहता है। रोगी की मानसिकता ऐसी हो जाती है जैसे वह कहीं भाग जाना चाहता है।
और साथ ही रोगी के अन्दर मारने, काटने व हिंसा आदि की भावना पैदा होती रहती है। रोगी हर बात को भूल जाता है तथा वह हर समय व्यस्त रहना | चाहता है। लोगों से मिलने, बात करने तथा किसी नए स्थान पर जाने से डरता रहता है। रोगी में पागलपन व आत्महत्या करने जैसे स्वभाव उत्पन्न होते। हैं। इस तरह के मानसिक रोगों से संबन्धित लक्षणों से ग्रस्त रोगी को ठीक करने के लिए आयोइम औषधि का प्रयोग करने से यह औषधि रोगों में तेजी से क्रिया करके रोगों को ठीक करता है।

दूषित समीकरण । अधिक भूख के साथ दुबलापन, भूख और अधिक प्यास । खाने के बाद लक्षणों में कमी आये । घोर कमजोरी, जरा-से परिश्रम से पसीना छूटे । आयोडम का रोगी बहुत दुबला-पतला गहरे रंग का, लसिका वाहिनी ग्रन्थियाँ बढ़ी हुई, अधिक भूख लगे मगर फिर भी दुबला हो जाये । क्षय रोग का भेद ।
सभी ग्रन्थि-यन्त्र, साँस-यन्त्र, रक्त संचार-यन्त्र प्रभावित रहते हैं,  सभी क्षीण हो जाते हैं यह दवा सीसा-विष के उपद्रव का शमन करती है। जीर्ण प्रदाह का तीव्र प्रकोप । सन्धि प्रदाह और सन्धियों के आकार में विकृति आना । संयोजक तन्तु पर स्पष्ट काम करती है । प्लेग, घेघा, रक्तवाहिनी की असाधारण संकीर्णता, क्षुद्र, रक्तनलिकाओं में रक्ताधिक्य, जिसके बाद शोथ, काले दाग, रक्त-स्राव, पोषण बाधायें इसके प्रधान लक्षण हैं । मन्द-प्रतिक्रिया, अतः अनेक अवस्थाओं में जीर्ण होने की प्रवृत्ति । श्लैष्मिक झिल्लियों का तीव्र नजला, दुबलापन जो तेजी से आया हो, अच्छी भूख रहने पर भी ग्रंथि क्षीणता आये । अनेक भयंकर रोग और कण्ठमालिक रोग इस औषधि की आवश्यकता दर्शाते हैं । साँस-यन्त्र के तीव्र रोग । आयोडीन गरम होती है, इसलिए ठण्डा वातावरण आवश्यक होता है । फुफ्फुस प्रदाह जो तेजी से बढ़े । ऊपर जाने में कमजोरी और साँस फूलना । ग्रन्थि वृद्धि। ग्रन्थि सूजन और खड़खड़, सर्प डसने में अरिष्ट का उपयोग खाने और लगाने के लिए।

मन — चुप रहने के समय चिन्ता सताये । वर्तमान की चिन्ता और उदासी, भविष्य में कोई सम्बन्ध न हो । एकाएक दौड़ते और कोई अत्याचार करने का आवेग । भूलना, कोई न कोई काम करते रहना चाहे । लोगों से भय, सबसे घृणा, विषादग्रस्त अत्याचार की प्रवृत्ति ।

सिर — थरथराहट, खून दौड़ना और कसा फीता जैसा जान पड़ना । चक्कर, झुकने से और गरम कमरे में अधिक हो । वृद्ध लोगों का जीर्ण प्रदाह, सिर दर्द जो अधिक रक्तसंचित होने से हो । (फॉस) ।

आँखें — आँसू क्षीण, अधिक । आँखों में दर्द । पुतलियाँ फैली हुई । बराबर आँखें हिलाते रहना, तीव्र अश्रुकोष प्रदाह ।

नाक — छकना, अचानक तीव्र एन्फ्लुऐंजा, सूखा जुकाम जो खुली हवा में बहे, इसके अतिरिक्त बहता गरम जुकाम और चर्म का गरम रहना, नाक की जड़ और अग्र भाग का दर्द । नाक बन्द हो । घाव बनने की संभावना, सूँघने की शक्ति लोप होना, तीव्र नाक रक्ताधिक्य से सम्बन्धित हो ।

मुँह — मसूढ़े ढीले और खून बहे । गन्दे घाव और लार अधिक, बदबूदार लार बहना । जुबान पर मोटा मैल, अति दुर्गन्ध निकले ।

गला — स्वरयन्त्र संकुचित जान पड़े । चुल्लिका-ग्रन्थि का बढ़ना । घेघा, साथ में सिकुड़न की संवेदना । जबड़े के नीचे की ग्रन्थि की सूजन । कान की सूजन ।

आमाशय — आमाशय में थरथराहट । प्रबल भूख और अधिक प्यास, वायु डकार मानो खाने का प्रत्येक कण हवा में परिवर्तित हो गया है । अगर भोजन न करें तो बहुत उत्सुक और चिन्तित रहे (सीना, सल्फ) फिर खूब भोजन किये जाये और भूख लगे तो भी दुबला होता जाये (एब्रोटेनम) ।

उदर — जिगर और तिल्ली बढ़ी हुई और वेदनापूर्ण । कामला रोग । मध्यान्त्र ग्रन्थि का बढ़ना । क्लोम विषयक रंग । उदर में कटन के साथ दर्द ।

मल — अति मल त्यागने पर रक्तस्राव । अतिसार : सफेदी के लिए, झागदार चर्बीला मल, व्यर्थ काँखने के साथ कब्ज । ठण्डा दूध पीने से कम हो । कब्ज और अतिसार बारी-बारी (एण्टिम क्रूड) ।

मूत्र — बार-बार और अधिक, गहरा, पीला, हरा (बोविस्टा) । गाढ़ा, तीखा और सतह पर झिल्लियाँ तैरें ।

पुरुष — अण्डकोष कड़े । सूजे हुए और कड़े (हाइड्रोसील और उसके साथ अंडक्षीणता । कामाग्नि लोप) ।

स्त्री — मासिक काल में बहुत कमजोरी (एलुमिना, कार्बोएनिमेलिस, काकुलस इण्डिका, हैमैटॉक्स) । मासिक धर्म क्रमभ्रष्ट गर्भाशयिक रक्तस्राव । डिम्बाशय प्रदाह (एपिस, बेला, कैल्के) डिम्बाशय से गर्भाशय तक पच्चर ठोंके जा रहे हैं जैसा दर्द । स्तनों का सिकुड़ना, स्तनों के चर्म में कड़ी गुठलियाँ । तेजाबी प्रदर, गाढ़ा, चिकना, कपड़ा खा ले । दाहिने डिम्बाशय में पच्चर ठोंकने जैसा दर्द ।

श्वास-यन्त्र — आवाज फटी हुई, कच्चापन और गुदगुदी, जिससे सूखी खाँसी उठे । स्वर-यन्त्र में दर्द । स्वरयन्त्र प्रदाह और दर्दीला खुरखुरापन, खाँसने से कष्ट बढ़े । बच्चा खाँसते समय गला पकड़ ले । अधिक ताप के साथ, दाहिनी तरफ फुफ्फुस प्रदाह । सीना फैलाने में कठिनाई, खूनी बलगम, आन्तरिक सूखी गरमी, बाहरी ठण्डक । हृदय क्रिया तीव्र । फुफ्फुस प्रदाह । फेफड़ों का सख्त हो जाना, इसके साथ लगातार तेज बुखार । भारी तकलीफ होने पर भी दर्द होना, सेंकने से कष्ट अधिक हो, ठंडी हवा की प्रबल इच्छा । काले बाल और आँखों वाले कण्ठमालिक बच्चों की क्रूप खाँसी (ब्रोमियम इसके विपरीत) साँस भीतर खींचना कठिन । स्वर-यन्त्र में गुदगुदी के कारण सुबह की सूखी खाँसी । काली खाँसी की तरह खाँसी आना, साँस में कठिनाई, सांय-सांय करना । ठंडक नीचे की तरफ उतरे, सिर से गले और वायुनलिकाओं तक । सीने में कमजोरी । जरा-से परिश्रम से धड़कन हो । पानी वाली प्लूरिसी । सीने पर गुदगुदी, काली खाँसी, कमरे के अन्दर, तर मौसम में और पीठ के बल लेटने पर बढ़ती है ।
दिल — दिल दबोचा हुआ-सा मालूम पड़े । हृद्पेशी प्रदाह, दिल के चारों तरफ दर्दीली दाब । लोहे के हाथों से जकड़ा हुआ मालूम पड़े । (कैक्टस) । इसके बाद कमजोरी और गशी जैसी हालत । जरा-से परिश्रम से दिल धड़कना । दिल की तेज चाल ।
अंग — जोड़ सूजे हुए और वेदनापूर्ण । रात में हड्डियों में दर्द । सफेद सूजन, सुजाक के कारण आई वात पीड़ा, गरदन की जड़ और ऊपरी अंगों का वात रोग । हाथ और पैर ठण्डे । पैर में तीखा पसीना आये । बड़ी धमनी मण्डल में धुकधुकाहट, वात पीड़ा, जोड़ों में रात्रि-पीड़ा, संकुचन संवेदना ।

चर्म — गरम, सूखा, पीला, सिकुड़ा हुआ, ग्रन्थियाँ सूजी हुई । अस्थि गुल्म । हृदय रोग जनित सर्वांग शोथ ।

ज्वर — सारे शरीर में गरम लपटें उठे, ज्वर स्पष्ट, बेचैनी, गाल लाल, मन्दता । अधिक पसीना ।

घटना-बढ़ना — घटना : चुप रहने से, गरम कमरे में, दाहिनी तरफ । बढ़ना खुली हवा में इधर-उधर टहलने से ।

सम्बन्ध याट्रेन, आयोड., रोग उत्पत्ति विचार से कार्बोलिक एसिड के समान है ।
क्रियानाशक हीपरसल्फ, ग्रंटियोला 
पूरक-लाइकोपोडियम, बैडियागा ।
तुलना: ब्रोमियम, हीपर, मर्कुरियस, फास्फो., एब्राटेनम, नेट्रम म्यूर, सैनिक्युला, टयुबरकुलिनम 

मात्रा यह औषधि रोगी 3 से 30 शक्ति । प्रयोग करके देनी चाहिए  यह औषधि रोगी जीभ पर दो दो बूंद टपकानी चाहिये सुबह, दोपहर, शाम, देने की आवश्यकता होती है। इस दवाई कोई साइड डिफेक्ट नहीं होता हैं।

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Milan Tomic

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