मन को शांति देते भगवान बुद्ध के विचार | God Buddha's thoughts give peace to the mind

मोक्ष तक पहुँचने के तीन सरलतम मार्ग हैं। 




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Gautam Buddha (भगवान गौतम बुद्ध)


जीवन परिचय :

नाम : भगवान गौतम बुद्ध, सिद्धार्थ, तथागत
जन्म : 563 ई. पूर्व
जन्म स्थान लुम्बिनी (वर्तमान नेपाल में )
अवसान 483 ई. पूर्व (80 वर्ष की आयु में) (कुशीनगरउत्तर प्रदेशभारत)
प्रसिद्ध बौद्ध धर्म के संस्थापक
पूर्ववर्तीकस्सपा बुद्ध
उत्तराधिकारीमैत्रेय बुद्ध


मोक्ष प्राप्ति के लिए मन का शुद्ध होना बहुत जरुरी हैं


बुद्ध के उपदेश: बुद्ध ने सुनिद्रिष्ट सिन्दांत कि बजाय तार्रिक, अध्यात्मिक विकास की बात कि ! उन्होनें वेदों कि अलघ्यता का खंडन किया निर्गम पशुबलि का विरोध किया, जटिल,विस्तृत तथा अर्थहीन कर्मकांडो की निंदा की, जाति प्रथा तथा पुरोहित वर्ग के प्रमुख को चुनोती दी एव ईश्वर के बारे में अज्ञेंवादी दृष्टिकोण अपनाया !

चार सत्य:– 
1.      विश्व दु:खमय हैं
2.      तृष्णा दुःख के मूल में हैं (तृष्णा )
3.      इच्छाओ के त्याग से ही दुःख निरोध संभव हैं
4.      अष्टांगिक मार्ग दुःख निरोध-गामिनी प्रतिपदा हैं

निर्वाण का शाब्दिक:- अर्थ हैं- ‘दीपक का बुझ जानाअथवा अपनी सभी तृष्णा एव वेदना का अंत यह मान्त्र शारीरीक अनुपस्थिति अथवा सब कुछ समाप्त हो जाना नहीं हैं ! जो यक्ति सभी तृष्णाओं एव लालसा से दूर हैं वही चरम शांति का अनुभव कर सकता हैं वह बारम्बार जीवन-मरण के चक्र से छुटकारा प्राप्त कर सकता हैं !                              



पहला आष्टांग योगदूसरा जिन त्रिरत्न और तीसरा आष्टांगिक मार्ग। हम यहाँ आष्टांगिक मार्ग के बारे में जानने का प्रयास करते हैं। बौद्ध धर्म मानता है कि यदि आप अभ्यास और जाग्रति के प्रति समर्पित नहीं हैं तो कहीं भी पहुँच नहीं सकते हैं।

आष्टांगिक मार्ग सर्वश्रेष्ठ इसलिए है कि यह हर दृष्टि से जीवन को शांतिपूर्ण और आनंदमय बनाता है। बुद्ध ने इस दुःख निरोध प्रतिपद आष्टांगिक मार्ग को 'मध्यमा प्रतिपदया मध्यम मार्ग की संज्ञा दी है। अर्थात जीवन में संतुलन ही मध्यम मार्ग पर चलना है।


क्या है *आष्टांगिक मार्ग?*


1. *सम्यक दृष्टि*

इसे सही दृष्टि कह सकते हैं। इसे यथार्थ को समझने की दृष्टि भी कह सकते हैं। सम्यक दृष्टि का अर्थ है कि हम जीवन के दुःख और सुख का सही अवलोकन करें। आर्य सत्यों को समझें।


2.* सम्यक संकल्प :* 

जीवन में संकल्पों का बहुत महत्व है। यदि दुःख से छुटकारा पाना हो तो दृढ़ निश्चय कर लें कि आर्य मार्ग पर चलना है।

3. *सम्यक वाक*

जीवन में वाणी की पवित्रता और सत्यता होना आवश्यक है। यदि वाणी की पवित्रता और सत्यता नहीं है तो दुःख निर्मित होने में ज्यादा समय नहीं लगता।

4. सम्यक कर्मांत :

कर्म चक्र से छूटने के लिए आचरण की शुद्धि होना जरूरी है। आचरण की शुद्धि क्रोधद्वेष और दुराचार आदि का त्याग करने से होती है।

5. सम्यक आजीव :

यदि आपने दूसरों का हक मारकर या अन्य किसी अन्यायपूर्ण उपाय से जीवन के साधन जुटाए हैं तो इसका परिणाम भी भुगतना होगा इसीलिए न्यायपूर्ण जीविकोपार्जन आवश्यक है।

6. सम्यक व्यायाम :

ऐसा प्रयत्न करें जिससे शुभ की उत्पत्ति और अशुभ का निरोध हो। जीवन में शुभ के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए।


7. सम्यक स्मृति : 

चित्त में एकाग्रता का भाव आता है शारीरिक तथा मानसिक भोग-विलास की वस्तुओं से स्वयं को दूर रखने से। एकाग्रता से विचार और भावनाएँ स्थिर होकर शुद्ध बनी रहती हैं।


8. *सम्यक समाधि*

उपरोक्त सात मार्ग के अभ्यास से चित्त की एकाग्रता द्वारा निर्विकल्प प्रज्ञा की अनुभूति होती है। यह समाधि ही धर्म के समुद्र में लगाई गई छलांग है।

*क्यों आवश्यक आष्टांगिक मार्ग?*


बौद्ध इसे 'काल चक्रकहते हैं। अर्थात समय का चक्र। समय और कर्म का अटूट संबंध है। कर्म का चक्र समय के साथ सदा घूमता रहता है। आज आपका जो व्यवहार है वह बीते कल से निकला हुआ है। कुछ लोग हैं जिनके साथ हर वक्त बुरा होता रहता है तो इसके पीछे कार्य-कारण की अनंत श्रृंखला है। दुःख या रोग और सुख या सेहत सभी हमारे पिछले विचार और कर्म का परिणाम हैं।

पुनर्जन्म का कारण पिछला जन्म है। पिछले जन्म के कर्म चक्र पर आधारित यह जन्म है। बौद्ध धर्म के इस कर्म चक्र का संबंध वैसा नहीं है जैसा कि माना जाता है कि हमारा भाग्य पिछले जन्म के कर्मों पर आधारित है या जैसी कि आम धारणा है पिछले जन्मों के पाप के कारण यह भुगतना पड़ रहा है। नहींकर्म चक्र का अर्थ प्रवृत्तियों की पुनरावृत्ति से और घटनाओं के दोहराव से है। बुरे घटनाक्रम से जीवन को धीरे-धीरे अच्छे घटनाक्रम के चक्र पर ले जाना होगा।


समाधि प्राप्त करना हो या जीवन में सिर्फ सुख ही प्राप्त करना हो तो कर्म के इस चक्र को समझना आवश्यक है। मान लो किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है तो उस अपराध की पुनरावृत्ति का वही समय होगा। आपके जीवन में जो दुःख जिस समय घटित हुआ है तो जानें उस समय को कि कहीं ठीक उसी समय वैसी ही परिस्थितियाँ तो निर्मित नहीं हो रही हैंमन व शरीर हमेशा बाहरी घटनाओं से प्रतिक्रिया करते हैं इसे समझें। क्या इससे अशुभ की उत्पत्ति हो रही है या की शुभ कीबौद्ध धम्म कहता है कि हम सिर्फ मुक्ति का मार्ग बता सकते हैं। उस पर चलना या नहीं चलना आपकी मर्जी है।
नमामि बुद्धा।

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Milan Tomic

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